दुर्गा चालीसा (Durga Chalisa)
दुर्गा चालीसा एक प्रमुख हिंदू धार्मिक भजन है, जो देवी दुर्गा की महिमा को गाता है और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करता है। यह चालीसा 40 श्लोकों से मिलकर बनी हुई है, जिनमें मां दुर्गा की महत्त्वपूर्ण गुणगाथाएं और उनके दिव्य स्वरूप का वर्णन किया गया है। इसे पढ़ने और गाने से व्यक्ति को दुर्गा माता के प्रति भक्ति और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
दुर्गा चालीसा के महत्व:
1. आशीर्वाद और सुरक्षा: दुर्गा चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और वह सुरक्षित रहता है।
2. भक्ति और ध्यान: इस चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति की भक्ति और ध्यान में वृद्धि होती है, जो आत्मिक शांति का अहसास कराता है।
3. दुःखों का हरण: मां दुर्गा के प्रति श्रद्धा रखने से दुःखों का हरण होता है और व्यक्ति का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य सुधरता है।
4. सफलता की प्राप्ति: यह चालीसा सफलता की प्राप्ति में मदद करती है और व्यक्ति को आत्म-समर्पण की भावना दिलाती है।
5. कष्टों का निवारण: दुर्गा चालीसा पाठ करने से कष्टों और संकटों का निवारण होता है और व्यक्ति का जीवन सुखमय बनता है।
6. आत्मा की शुद्धि: यह चालीसा आत्मा की शुद्धि और स्वाध्याय की प्रोत्साहक होती है, जिससे व्यक्ति अध्यात्मिक विकास में प्राप्ति करता है।
नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥निरंकार है ज्योति तुम्हारी ।
तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥
शशि ललाट मुख महाविशाला ।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥
 
Singer B Vini का श्री दुर्गा चालीसा देखे
रूप मातु को अधिक सुहावे ।
दरश करत जन अति सुख पावे ॥ ४
तुम संसार शक्ति लै कीना ।
पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला ।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी ।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें ।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥ ८
रूप सरस्वती को तुम धारा ।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा ।
परगट भई फाड़कर खम्बा ॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो ।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं ।
श्री नारायण अंग समाहीं ॥ १२
क्षीरसिन्धु में करत विलासा ।
दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी ।
महिमा अमित न जात बखानी ॥
मातंगी अरु धूमावति माता ।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी ।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥ १६
केहरि वाहन सोह भवानी ।
लांगुर वीर चलत अगवानी ॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै ।
जाको देख काल डर भाजै ॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला ।
जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत ।
तिहुँलोक में डंका बाजत ॥ २०
शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे ।
रक्तबीज शंखन संहारे ॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी ।
जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥
रूप कराल कालिका धारा ।
सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब ।
भई सहाय मातु तुम तब तब ॥ २४
अमरपुरी अरु बासव लोका ।
तब महिमा सब रहें अशोका ॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी ।
तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें ।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई ।
जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥ २८
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी ।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥
शंकर आचारज तप कीनो ।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को ।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥
शक्ति रूप का मरम न पायो ।
शक्ति गई तब मन पछितायो ॥ ३२
शरणागत हुई कीर्ति बखानी ।
जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा ।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो ।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥
आशा तृष्णा निपट सतावें ।
मोह मदादिक सब बिनशावें ॥ ३६
शत्रु नाश कीजै महारानी ।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥
करो कृपा हे मातु दयाला ।
ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै ।
सब सुख भोग परमपद पावै ॥ ४०
देवीदास शरण निज जानी ।
कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥
॥दोहा॥
शरणागत रक्षा करे,
भक्त रहे नि:शंक ।
मैं आया तेरी शरण में,
मातु लिजिये अंक ॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा ॥