श्री हनुमान चालीसा

Home  CHALISA श्री हनुमान चालीसा

श्री हनुमान चालीसा

हनुमान चालीसा एक प्रसिद्ध हिन्दू भगवान हनुमान का भक्तिगीत है जो ४० श्लोकों में मिलता है। यह संक्षिप्त और प्रभावी है, और हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। निम्नलिखित हैं हनुमान चालीसा के महत्वपूर्ण पहलू:

1. भगवान हनुमान की प्रशंसा: हनुमान चालीसा एक प्रमुख तरीका है भगवान हनुमान की पूजा और प्रशंसा करने का। यह चालीसा भक्तों को उनके आराध्य देवता के प्रति उनकी श्रद्धा और विश्वास को मजबूत करने में मदद करती है।

2. आत्मिक शांति और सुख: हनुमान चालीसा को नियमित रूप से पढ़ने से भक्त का मानसिक और आत्मिक सुख मिलता है। यह चालीसा चिंता, तनाव, और दुख को दूर करने में मदद करती है और आंतरिक शांति प्रदान करती है।

3. सुरक्षा और आशीर्वाद: हनुमान चालीसा के पाठ से भक्तों को भगवान हनुमान की कृपा और सुरक्षा की आवश्यकता सदैव मिलती है। यह चालीसा भक्तों को राक्षसों, बुराई, और आपत्तियों से बचाने में सहायक होती है।

4. धार्मिक संवाद: हनुमान चालीसा का पाठ संगत और परिवार के सदस्यों के साथ किया जा सकता है, जिससे धार्मिक संवाद को प्रोत्साहित किया जा सकता है और धार्मिक मूल्यों की जानकारी प्राप्त हो सकती है।

वीडियो में देखें

5. आध्यात्मिक विकास: हनुमान चालीसा के शब्द भक्तों को आध्यात्मिक विकास की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। यह चालीसा ध्यान और मनन का एक अच्छा तरीका हो सकता है, जो आत्मा के साथ संवाद बढ़ावा देता है।

6. आपके जीवन को धार्मिक दिशा देना: हनुमान चालीसा के पाठ से आपके जीवन में धार्मिक दिशा और मूल्यों का पालन करने की प्रेरणा मिल सकती है। यह आपको अच्छे कर्मों की ओर मोड़ सकता है और सही राह पर चलने में मदद कर सकता है।

दोहा:

श्रीगुरु चरण सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि।
बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवनकुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहि, हरहु कलेस विकार॥

चौपाई:

जय हनुमान ज्ञान गुणसागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥

हाथ बज्र और ध्वजा बिराजै।
कांधे मूँज जनेऊ साजै॥

शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महाजगवन कंदन॥

विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सवारे॥

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥

रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई॥

सहस बदन तुम्हरो यश गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सकै कहाँ ते॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥

तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥

युग सहस्र योजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलदि लांघि गये अचरज नाहीं॥

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

सब सुख लहै तुम्हारी शरणा।
तुम रक्षक काहू को डर ना॥

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै॥

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

संकट सेंनानि अजिकराम।
नंदनान बिरति हरण भारी॥

संकट तें हनुमान छुडावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥

चरों युग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥

साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥

अंतकाल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई॥

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

जय हनुमान ज्ञान गुणसागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

जय हनुमान ज्ञान गुणसागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

दोहा:

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।

॥बोलिये सिया पति राम चन्द्र की जय॥