भक्त प्रहलाद और होलिका की कहानी

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भक्त प्रहलाद और होलिका की कहानी

हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को होली मनाई जाती है. भक्त प्रहलाद और होलिका की कहानी भारत के धार्मिक आख्यानों में से एक है. सतयुग में हिरण्यकश्यपु का पुत्र प्रहलाद विष्णु जी के परम भक्त थे. हिरण्यकश्यपु बहुत क्रूर था. उसने अपनी वीरता से देवताओं को कई बार परास्त किया. हिरण्यकश्यपु को विष्णु जी की भक्ति करना पसंद नहीं था. देवताओं को परास्त करने की वजह से राक्षसों में उसकी ख्याती बहुत बढ़ गई और उसमें अभिमान आ गया. उसे लगा कि वह किसी से परास्त नहीं हो सकता है. अपनी शक्ति को और अधिक बढ़ाने के लिए उसने ब्रह्मा की तपस्या की. उसकी घोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उससे वरदान मांगने को कहा.

हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मांगा. ब्रह्मा ने बताया कि मृत्युलोक में पैदा होने वाले हरेक प्राणी को मरना ही पड़ता है इसलिए वह कोई और वरदान मांगे. तब हिरण्यकश्यप ने वरदान मांगा कि उसकी मृत्यु न दिन में हो और न रात में. न कोई मनुष्य उसे मार पाये न कोई जानवर, न कोई देवता उसे मार पाये, न कोई मनुष्य. न उसे घर के अंदर कोई मार पाये और न घर के बाहर. न उसे जमीन पर कोई मार पाये और न आसमान में. न मेरी मृत्यु अस्त्र से हो और न शस्त्र से. ब्रह्मा ने तथास्तु कहा और हिरण्यकश्यप को यह सारे वरदान दे दिये. भक्त प्रहलाद विष्णु भगवान के भक्त होने की वजह से वह उनको मारना चाहता था. उसने कई बार षड़यंत्र रच कर मारना चाहा लेकिन असफल रहा.

फिर उसने अपनी बहन होलिका से सारी दास्तान बता कर मारने की सुपारी दे दी. होलिका को आग में न जलना का वरदान मिला हुआ था. अपने भाई के आदेश का पालन करते हुए, तब हिरण्यकश्यपु की बहन होलिका प्रहलाद को लेकर आग में बैठ गई. लेकिन प्रह्राद भगवान विष्णु के नाम का जप करते रहे और भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए. विष्णु जी की कृपा से होलिका जल गई और भक्त प्रहलाद बच गया.

तभी से प्रहलाद की जीत के रूप में होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है. हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक रूप में हर वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है। इस प्रकार हरि कृपा से हिरण्यकश्यप उनका कुछ न बिगाड़ सका. भक्त प्रहलाद की ख्याती दूर-दूर तक फैलने लगी. लोगों को भगवान पर भरोसा हो गया.